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भारतीयों की फिल्म रुचियों में बदलाव काफी गहन


एक दौर था जब बॉलीवुड में अमर-प्रेम,आंनद,मदर इंडिया जैसी फिल्में बना करती थी 1960 से लेकर 1990 तक की कई फिल्में ऐसी थी की उनके नायक साफ़ सुलझे हुए इंसान हुआ करते थे जो बुराई या किसी बुरे इंसान यानी खलनायक को उनके गलत मंसूबों को पूरा नहीं करने देते थे |
फिल्में लोगों के जीवन में उनकी सोच में बदलाव लाती हैं | अत: फ़िल्म निर्देशन एक वाकई जिम्मेदारी भरा काम होना चाहिए जो समाज को बेहतर बनायें पर हालियाँ फिल्में देखें तो इनका कोई तुक ही नहीं बैठता केवल वॉर और पुरुषों को उग्र बनाने की मानसिकता को लिए आ रही हैं फिल्म( कबीर सिंह,animal, ) ऐसी ही फ़िल्मों के कुछ उदाहरण हैं |
 फिल्म animal में अल्फा मेन का ज़िक्कर किया गया हैं इनकी माने तो अल्फा औरतों पर हाथ उठाते हैं नशा करते हैं तथा हर वक्त काफी उग्र रहा करते है और ऐसे ही पुरुष महिलाओं को पसंद आते हैं 

मुद्दे की बात ये हें की जब निर्देशक के पास अच्छी कहानियाँ नहीं रहती तब वें फ़िल्मों में केवल सेक्स और वॉर कहानी के नाम पे परोस देते हैं और सोचने वाली बात ये भी की ऐसी फिल्में भारतीय दर्शकों को काफी पसंद आ रही है जो की एक चिंता का विषय है। 

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